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________________ ( ५ ) करे, जैसा कि इस समयके विद्वान् देशाटन के लाभदायक उपदेश सुनाया करते है | सर्व भाइयोंका एक स्थानपर मिलना होता है अतएव अच्छी २ गूढ़ वार्तो पर भी विचार किया जा सकता है । आशा है कि शिक्षाका प्रचार अधिक होनेसे देशाटनका शौक सर्वके हृदयमें स्थान पायगा जिससे तीर्थयात्रा और देशाटन दोनो कार्योंकी सिद्धि हो सकेगी । यात्रियोंको ध्यान में रखने योग्य सूचनाएं. १. पाप तो किसी भी जगह अच्छा नहीं होता परंतुः -- अन्यक्षेत्रे कृतं पापं . तीर्थक्षेत्रे विनश्यति । तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं, वज्रलेपः प्रजायते ॥ अर्थात् दूसरी जगह किया हुआ पाप तीर्थ स्थानमें तो छूट भी जाता है, परंतु तीर्थस्थानमें किया हुआ पाप वज्रका लेप हो जाता है इस लिये यात्री को चाहिये जहा तक हो वहां तक पाप वृत्तिसे बचे. २. परिणाम शुद्ध करनेकी और पाप निवारण करनेकी मनमें भावना घर यात्राको जाना चाहिये न कि योती मान बढ़ाई के लिए. तथा धर्मध्यानमें विशेष समय न लगाकर लडुआ पुड़ी तथा गप्पाष्टकोंमें लगाने के लिये; क्योंकि ऐसा करनेसे तीर्थयात्राका असली उद्देश सिद्ध नहीं होगा.
SR No.010325
Book TitleJain Tirth Yatra Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDahyabhai Shivlal
PublisherDahyabhai Shivlal
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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