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________________ ताके वल्लभ ! जिन राईसर (राजा युवराज), तलवर (तलाटी), माईविक (लग्न करनेवाले), कोडविक (कुटुम्बी), सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदिने गृहस्थपन छोडकर आपके पास साधुपन स्वीकार किया हो उन्हें धन्य है। परन्तु मेरी ऐसी सामर्थ्य नहीं है कि ऐसा कर सङ्घ । इस लिये गृहस्थीमें रहकर आपके पास पांच अणुव्रत और सात शिक्षाप्रत यों श्रावक धर्मरुप बारह व्रतको ग्रहण करुंगा। भगवानने कहाः हे देवताके वल्लभ! जैसे सुख उत्पन्न हो वैसे करो. परन्तु धर्मके काममें विलम्ब न करो। फिर आनन्द गाथापतिने नीचे लिखे मुआफिक श्री महावीरके पास बारह व्रत अंगीकार किये। पहिला व्रत. यावज्जीवन दो करण और तीन योगसे स्थल' और उस जीवकी हिंसा करनेका (पत्याख्यान) पञ्चखाण (अर्थात् बंदी.) दूसरा व्रत. __ यावज्जीवन दो करण और तीन योगसे स्थूल झूठ बोलनेके पच्चखाण. ४ ५ अणुयत, ३ गुणग्रस, ४ शिक्षाबत = १२ प्रत. १. यरोयो. २ चलते फिरत-हलते दुलते जीव. ३. योग तीन है. मनोयोग, वघयोग व काययोग. तीन योगसे किसी पापको त्यागनाफा अर्थ यह है कि मन, वचन, कायसे न करना। करना, कराना, और करनेघालेको अच्छा जानना इसे निकरण ' कहते हैं । निकरण ' से पापफी बंदी की इसका अर्थ है कि ऐसी प्रतिज्ञा ली गई कि न पाप किया न पाप करनेवालेको भच्छा जाना न पाप कराया. मन, वचन, कायसे पाप न करनेका नियमको ‘तिन कोटि ' से नियम किया कहा जाता है। इन तीनों योगेसेि पाप न करानेको दूसरी तीन कोटि' नियम कहते हैं(यो छह कोटि हुई) तीनों योगेसे पाप करते हुएको भएछा न जागना तीसरी तीन कोटि फहाती है (यो नय कोटि हुई)
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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