________________
१२९
पीह, फलग, शैय्या, संथारा, उपकरण और औषधि जो चाहिए सो लेते विचरना" । ऐसा कहनेसे श्रमण भगवान श्री महावीर सदालपुत्र के ५०० दुकानसे प्राशुक, एपणीक, पाढीभार-पीढ-फलग-शय्या-संथारा-उपकरण-औषधि आदि लेते हुए विचरने लगे। ___एक वक्त मिट्टी के कच्चे वर्तनको दुकान के बाहर धूपमें सूकते हुए देखकर सदालपुत्रसे महावीर स्वामीने पूछा कि" अहो सदालपुत्र ! ये मिट्टी के बर्तन कैसे हुए ? " सहालपुत्रने कहा-" हे पूज्य ! यह पहेले मिट्टी थी। उसे पानीसे भिजोया। छोटी मोगरीसे एकत्र करके पिंड बनाया। फिर चाक पर चढाकर हाथसे जैसा चाहा घाट बनायां । " श्रमण भगवान वोले-" अहो 'सदालपुत्र ! ये कबी मिट्टीके वर्तन उत्थान, बल, वीर्य या किसी प्रकारके भी पुरुषार्थ या पराक्रमके बिना ही हो गये ?" सद्दालपुत्र बोला-“हे भगवन् ! उत्थान, बल, वीर्य, पराक्रम या पुरुषार्थ कुछ नहीं है । सब भाव नित्य है।
. इसके बाद श्रमण भगवान महावीर स्वामी सदाल पुत्रसे कहने लगे:" अहो सदालपुत्र श्रावक ! तेरे कच्चे,पक्के वर्तनोंको कोई तेरे सामने ही तोड-फोड दे, छीन ले और तेरी भार्या अग्निमित्राके साथ संसारके सुख भोगे तो तू उसे क्या दंड दे?"। सहालपुत्र बोला-" हे भगवन् । मैं उसे गाली दूं, बांध दूं। और मारूं"। भगवान बोले-'हे सहालपुत्र ! उत्थातादि क्रिया पराक्रम कुछ नहीं है और सब भाव नित्य है। यदि तू यह कहता है तो तेरा अपराध करने