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अध्ययन ७ वा-सदालपुत्र.
उस काल उस समयमें पोलासपुर नाम नगर था। सहस्रांववन बाग था। जीतशत्रु राजा राज्य करता था। वहां सहालपुत्र कुम्हार रहता था, जो बडा धनवान था ।गोशाला उर्फ मंखलीपुत्रका उपासक था । वे गोशालाके मतमें प्रवीण था और उसमें उसकी हड्डीर रंगी हुई थी । वह अपने धर्मके सिवाय. अन्य सब धर्माको अनर्थ जानता था। एक कोटि सुवर्ण उसके जमीनमें गड़ा हुआ था । एक कोटि सुवर्णसे व्यापार करता था और एककोटिकी घरमें सजावट थी। और उसके एक गोकुल दस हजार गायोंका था । उसके अग्निमित्रा नामा ली थी । पोलासपुरके वहार उसकी ५०० दुकानें थी। उसके बहुतसे नौकर थे। वह नाना भांतिके घडे, मटकीयां, कुंजे, झारीयें और कुडले आदि बर्तन तैयार करता था और राजमार्गपर उसकी दुकान थी, वहां व्यापार करता था।
एक दिवस सहालपुत्र ( गोशालाका श्रावक ) अशोक वाडीमें गोशालाके धर्मकी प्रज्ञप्ति लेकर बैठा था । इतने में उसके पास एक देव प्रकट हुआ और आकाशमैं खडा रहकर धुंघर वजाता हुआ, वस्त्राभूषण पहने हुए, कहने लगा--"हे