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अध्ययन : ला-आनन्द गाथापति.
वाणिज्यग्राम नगर में जितशत्रु नामका राजा राज्य करता था। वहां पर एक बंडा भारी धनवान' आनन्द नामका गाथापति ( गृहस्थ ) रहता था । वह इतना धनवान था कि चार कोटि सुवर्ण जमीनमें गाड रखता था। चार कोटि सुवर्णसे व्यापार करता था और चार कोटि सुवर्णसे घरको सजाया था । उसके यहां १०,००० गायका १ गोकुल ऐसे ४ गोकुल थे.
इतना धनवान होने पर भी और ऐसा जीवदयाधारी होने पर भी आनन्द गाथापनि ( ऐसा चतुर था कि ) राजपुरुप, सार्थवाह, कुटुम्बी, धरके मनुष्य आदि सब क्या गुप्त विषय में और क्या व्यवहारकी वार्ता में इसकी सलाह लेते थे । यह कुटुम्बमें स्थम्भके समान था ।
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आनन्दकी पत्नी शिवानंदा भी बडी रूप वाली ३२ लक्षण और ६४ कलामें प्रवीण थी । त्री पुरुष एक दोनोंको वडे
* सद्गृहस्थ कैसा लायक होता है यह इससे जान पडेगा । यह पैसावाला हो इतना ही नहीं वह गोप्रतिपालक भी होना चाहिए। गंभीर होना चाहिए। समझदार होना चाहिए। सब कोई उसे पूछे, गरीबों को निभावे, गुप्त मदद दे | अपना पेट भर लेनेवाला सख्स ‘सद्गृहस्थ' नहीं हो सकता । कुटुम्बियांका पोपण करे, नगरवालाको सलाह दे । इतना ही क्यों गूंगे जानवरों को भी पाले - पोपे । ( पहिले समय में हरेक साहुकार गोकुल रखते थे-यानी हजारो गायेfको पालते थे । आज रसकसका मुख्य साधन जो गाय भैंसे हैं, उनकी 'हिंसा बहुत होनेसे रसकस कम हो गये हैं। मनुष्य दुबले हो गये हैं और जमीन नीरस हो गई है । )