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अध्ययन ३ रा - चूलणीपिया गाथापति.
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उस काल और उस समय में वाराणसी नामक नगरी थी। वहां जीतशत्रु राजा राज्य करता था । इस नगर में चूलणीमिया नामक एक गाथापति रहता था । उसकी खीका नाम था सोमा । वह बडी रूपवाली थी । इस गाथापतिके पास आट कोटि सुवर्ण भूमिमें गड़ा हुआ था । आठ कोटिसे व्यौपार करता था । ८ कोटिकी: सजावट थी । इसके सिवाय वे आठ गोकुल का स्वामी था ।
एक समय भगवान श्री महावीर स्वामी कोष्टक नामक वन - उद्यानमें पधारे, वहां उन्होंको वंदन करने को चुलणीपिया गया । वन्दन नमस्कार कर उपदेश श्रवण कर आनंद श्रावकके जैसे श्रावक धर्म अंगीकार किया । घर आया । बडे पुत्रको सव घर कार्यभार सुपुर्द कर दिया । आप अपना जीवन धर्ममें व्यतीत करने लगा | स्त्री- पुत्रादिसे पूछ कर पौषधशाला में पौष करते ग्यारह प्रतिमाको अंगीकार कर विचरने लगा ।
एक रोज श्रावकजी पौषध करके बैठेथे, इतनेहीमें आधी रात के समय एक देव कमल कीसी उजली और बीजलीसी चमकती हुई तरवार हाथमें लेकर आया और कहने लगा: "हे चूलगीपिय श्रावक ! अमार्थित मरणके चाहनेवाले ।