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और बडी कोठी कीसी उसकी जांघ थी। लोहेकी एरण समान उसके पैर थे, गाडेके उंटडे समान हिलता हुआजांघोंका ढांचा था। मुख पोला कर जीभ बाहर निकाली थी। उससे ललाट को चाट रहा था। काकीडेकी और चूओंकी माला पहन रखी थी। और न्यौलेको कानों में लटका रखा था। सांपका उत्तरासन किये हुए था। ऐसा भयंकर रुप धारण किये हुए वह तालिये वजाता हुआ, गर्जना करता हुआ और हूड हड हंसता हुआ, नाना प्रकारके रोमराय युक्त पंचवर्ण,एक बड़ी भारी नीलोत्पलसी अलसीके फूलकीसी हाथमे नंगी तरवार ले कर वहां पौपधशालामें आया,जहां कामदेव श्रावकने पौपथ किया या । वहा आकर क्रोधसे सुंसाटा करता हुआ कामदेवको कहने लगा." अरे कामदेव श्रावक ! वे मौत मरनेकी इच्छा करनेवाले ! बुरी पर्यायांका धनी ! बुरे लक्षणवाले ! खराब चौदश पूनमके जन्मे हुए ! लज्जा-शोभा-कीर्ति-धैर्य हीन ! यदि तू पौषधको खंडित न करेगा तो मैं इस तरवारसे तेरे टुकडे टुकडे उडा दूंगा । और इससे तू खूप दुःखी होगा व आध्यान और रौद्रध्यान ध्याता हुआ अकाल मौतसे मरेगा।"
इस प्रकार दो तीन बार कहा परन्तु इससे कामदेव न डरा, न दुःखी हुआ, न विचलित हुथा, और बोला भी नहीं और अपने धर्मध्यानमें रह रहा।
कामदेवको विचलित हुआ न देख कर पिशाच बहुत क्रुद्ध हुआ। उसके ललाटमें तीन सल पड गये । कामदेवके शरीरके उसने टुकडे २ कर दिये । इससे कामदेवको वडाही
* यह वर्णन धीरे धीरे मननपूर्वक पढनेका है। श्रावकजीके
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