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________________ ९२ आनन्द गाथापति श्रावक हुआ और शिवनन्दां भार्या श्राविका । वे दोनों जीव अजीव और नो तत्व के ज्ञानी हो साधु-साध्वीको दान देते हुए पोषध, उपवास, आयंवील आदि तप करते हुए विचरते हैं । इस तरह चौदह वर्ष हो गये । पन्दरहवें वर्ष एक समय आधीरातमें धर्म जागरिका जगते हुए आनन्द गाथापतिको अध्यवसाय उत्पन्न हुआ। उसने सब सेठ, सेनापति, मित्र जाति समुदायको वुला जिम्हा कर बडे पुत्रको घरका भार समर्पण किया । फिर उससे पूछ कोल्लाग सन्निवेशमें पोषधशाला और लघुशंका और दीर्घशंकाकी भूमिको पडीलेह, पोषधशाला में डाभका संथारा बनाया। उस पर बैठ कर पोषध किया । और डाभके संधारेमें बैठ कर श्रावककी ग्यारह * प्रतिमा रुप धर्मको अंगिकार किया । १ ली प्रतिमा १ मासकी, २ री दोकी, यों ११ वीं ग्यारह मासकी आराधन करते हुए विचरने लगे । - दुष्कर तप करते २ आनन्दजीका शरीर दुबला होकर सूख गया । एक समय आधीरातमें धर्म जागरिका जगते २ उसे ऐसा अध्यवसाय उपजा "मेरे शरीर में वीर्य, बल, पराक्रम कम हो गया है । यदि मेरे धर्माचार्य श्री महावीर स्वामी पधारें तो उनके पास प्रातःकालमें संलेहणा कर चार प्रकारके आहारवा त्याग करूं " ऐसी निर्मळ लेश्याको ध्याते हुए ज्ञानावरणीय * ( 1 ) प्रतिमा १ मासकी जिसमें शुद्ध सम्यक्त्व पाला जावे. (२) दो मासको अच्छे व्रतोंका पालना. (३) तीन महीनेकी सामायिक. (४) पोपध प्रतिमा. (५) काउरसग. (६) ब्रह्मचर्य. (७) 'सचित आहारं त्याग. (८) आरंभ वजेन. (९) 'नृत्य प्रेक्षावर्जन. (१०) उद्दिष्ट आहार त्याग. ( ११ ) नाथा मुंडाकर रजोहरण लेकर यति जैसा होकर फिरे । सब मिल कर पांच वर्ष छह मास में पूरी होती है
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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