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SAMAY
तृतीय अधिकार. अमूर्त भात्मा मूर्त कर्मों को ग्रहण करता है। प्र-जीव स्वयं अरूपी होने से हस्तादि और इंद्रियाँ की
सहाय के बिना कर्म किस से ग्रहण करता है ? किसी को कुछ ग्रहण करना होता है तब वह प्रथम वस्तु का निरीक्षण करता है तत्पश्चात् हस्तादि से उस को ग्रहण करता है। आत्मा वैसा नहीं है तो कर्म को कैसे
ग्रहण करेगा ? 'उ-आत्मा अपनी शक्ति से तथा कालादि से प्रेरित होकर
इन्द्रियों की मदद के बिना भविष्यकाल में भोग्य ऐसे कर्मों को ग्रहण करता है । देखो ! औषधियां से सिद्ध पारद की गूटिका । यद्यपि उस को हाथ, पैर नहीं होते तदपि दुग्धपान कराया जाता है। रांगा और जल को वह शोष लेती है । शब्दवेध करने की ताकात देती है और शुक्र की वृद्धि करती है तो फिर जिस की अचिन्त्य शक्ति है वैसा आत्मा क्या नहीं कर सकता ? और भी देखिए ! वनस्पति बिना हाथ-पैर आहार ग्रहण