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( ४३) है वह देखें । अमेरीका से प्रकाशित · फीझीकल कल्चर' के १९२८ के फेब्रुआरी के अंक में ८६ नंबर के पन्ने में इस तरह लिखा हैं।
" It is estimated that a vigorons healthy man. leading a moral life develops from one to two mi.. llion spermatozoa at a time.”
ऐसी गिनती करने में आई है कि नियमित जीवन और तंदुरस्तीवाले पुरुप के वीर्य में एक साथ १० से २० लक्ष तक ' स्पर्मेटोझाया ' ( मनुष्य के जीव बीज ) पैदा होते हैं।
(६) आकाश द्रव्य अरुपी है । ' अवकाश प्रदान' यह उस का धर्म है। मगर नैयायिक उस को शब्द का गुण मानते हैं, जिस का विरोध जैनशास्त्रोंने किया है। हम सोच सकते हैं कि शब्द जो रुपी है, पौद्गलिक है वह आकाश जैसी अरुपी चीज का गुण कैसे हो सकता है ? ' वायरलेसटेलीग्राफी', 'रेडीओ', 'टेलीफोन', 'ग्रामोफोन', तार आदि विज्ञान की नई खोजें शब्द के पौद्गलिकत्व का समर्थन करती है । जैनदर्शन शब्द को भी सूक्ष्म पुद्गल परमाणुओं से बना हुआ स्कन्ध मानते हैं। और शब्द का पुद्गलत्व सिद्ध करते हैं अन्यथा शब्द को हम पकड नहीं सकते । पुद्गलरुप से वह चौदह लोक में व्यापक माना जाता है। रेडीयो नामक यंत्र शब्दों को हजारों माईल तक सुना सकता है। और भी आशा है कि वह शब्द को इस से भी दूर सुना सकेगा। जैन