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(१२९ ) विचार योग्य वार्ता यह है कि वह सर्वगुणसंपन्न राजपुत्र केवल पंच को अमान्य होने से दुःख को पाता है जब पंचमान्य गुणहीन दुर्वलवंश समुत्पन्न राजा शासन चलाता है। इसी तरह चिंतामणी आदि निज स्वभाव से उत्तम होने पर भी परमात्मा की मूर्ति प्रामाणिक पंथों से पूजित होने से पृथ्वी पर विशेष मान्य है। देखो! . वरराजा ( दुल्हा ) महाजन, दत्तपुत्र और ऐसे ही अन्य विषय में जिस को भाग्य की प्रेरणा से स्थापित करता है वह मान्य होता है। ऐसे ही सौभाग्य नामकर्म के उदय से परमेश्वर की जो मूर्ति स्थापित की जाती है वह
पूजनीय होती है। प्र. उपर्युक्त प्रत्येक पदार्थ आकारवाले होने से उन की प्रतिभा . भी हो सकती है और कदाचित् पूजनीय भी हो सकती
है, किन्तु परमात्मा वीतराग तो निराकार प्रसिद्ध है तव उन का बिम्ब फैसे और उन की पूजा कैसी ? और अगर ऐसा किया जायेगा तब अतद् वस्तु में तद् वस्तु
का (अभगवंत में भगवंतत्व का ) दोष क्यों न होगा? उ० निराकार भगवन्त का विम्ब वह अवताराकृति की रचना
है । अर्थात् महात्माओंने भगवन्त का अन्तिम भव लक्ष्य में लेकर वैसी मूर्ति बनायी है और फिर भगवंत की किसी भी अवस्था को लेकर उन के अर्थी उन की पूजा करते हैं।