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कर के वहाँ मन्दिर आदि चिन्ह बनवाना वह ) भी वैसे ही फल को देनेवाले हैं। ___ और भी कार्मण तथा आकर्षण ( वशीकरणादि ) के ज्ञाता मदनादि निर्जीव पुतले पर जिन जीवों के नाम से . विधि करते हैं वे उस विधि से मूर्छित हो जाते हैं । इसी तरह स्व इश की प्रतिमा को प्रभु के नामग्रहणपूर्वक पूजा करनेवाला कुशल पुरुष ज्ञानमय प्रभु को प्राप्त करता है। जैसे कोई मालीक अपने चित्र को बहुमान करनेवाले सेवकों से खुश रहता है उसी तरह परमात्मा भी उन की प्रतिमा के पूजन से प्रसन्न होते हैं एसा हेतु के लिए भी
मानो (अन्यथा परमेश्वर तो सदाकाल प्रसन्न ही रहते हैं)। प्र० वादी प्रतिवादी को प्रश्न करता है कि-पूजन के लाभ
विषयक दृष्टान्त आपने दिये मगर दृष्टान्त में और दार्टान्तिक में महान अन्तर है क्यों कि उपर्युक्त देवादि रागी और पूजा की चाहना करनेवाले हैं किन्तु प्रभु-परमात्मा वैसे नहीं है उन का क्या ? सवाल का जवाब यही है कि अनीह (स्पृहा रहित) की सेवा अत्युत्तम फल को देनेवाली है और उन की सेवा से ही परमार्थ सिद्धि होती है जैसे स्पृहा से रहित सिद्ध
पुरुष की सेवा इष्ट की प्राप्ति के लिए होती है। प्र० सिद्ध पुरुष तो साक्षात् वर देते हैं किन्तु परमात्मा की प्रति
ष्ठित प्रविमा अजीव होती है तो वह क्या फल दे सकती है ?