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सतत प्रेरणा एव मार्गदर्शन से यह कार्य सम्पन्न हो सका है । परम ज्योतिर्विद प० मुनि श्री कुन्दनमलजी म० सा० ने इस अनुवाद को आद्योपान्त पढ़कर हमें अपने सुझावों से उपकृत किया है । तदर्थ मैं हार्दिक आभार प्रदर्शित करता हूँ ।
ग्रंथ प्रकाशन में पूर्ण सावधानी रखते हुए भी दृष्टि दोष के कारण रही हुई अशुद्धियो को पाठकगण सशोधन कर पठन करेंगे ऐसी आशा है
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गुलाबपुरा दि. २७-४-७१
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'मन्त्री -
'श्री श्वे० स्था० जैन स्वाध्यायी संघ गुलाबपुरा ( राजस्थान ) '