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शोक.
निन्द्रा ज्ञानावरणी के उदय से चार विकथा, हास्य, भय, डुंगळा के उदय हैं, तथा प्रमाद छट्टो गुणस्थान छ: कहे हैं, १ मद, २ विषय, ३ कपाय, ४ निन्द्रा, ५ जुयो, ६ पड़िलेहणा, ये छः प्रमाद घट्ट गुणस्थान पर्यन्त है, वे भी निन्द्रा लेते हैं, विकथा करने का स्वभाव भी है, शब्द विषय का वेदन भी है, कषाय भी उदय में आता है मान भी करते हैं तथा धर्म का कर्त्तव्य करते हुए भी ममत्व भाव उत्पन्न होता है, इसलिये प्रमाद का लगना स्वभाविक है, परन्तु इससे साधुपन समाप्त नहीं होता ।
फिर समय २ पर सिद्धान्त आदि पढ़ने से वैराग्य रस उत्पन्न होता रहता है अप्रमत्त भाव आते हैं इसलिये बार बार सातवें गुणस्थान पर चढ़ते हैं, वहां से घट्ट में भी गिरते हैं, परन्तु नीचे नहीं उतरते, और जो सदैव प्रमाद में ही रहे तो सातवें में नहीं चढ़कर नीचे उतरने का स्थान ■ है अधिक प्रमाद से साधुपन में अतिचार लगते हैं इसलिये प्रमाद हटाने का प्रयत्न करें परन्तु उसे सेवन करने का उपाय नहीं करे कितने ही मूढमति प्राणी वर्तमान काल में साधु को अतिचार लगते देख कर साधुपने में शंका करते हैं । वे कहते हैं कि अभी साधुपन कैसे पलता है ? ऐसे शंकाशील व्यक्तियों को भी अव्यक्तवादी जाने । निह्नव के नजदीक जाने । श्री ठाणांग सूत्र के नौवे ठाणे में कहा
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