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है कोई भी निष्फल नहीं ।' जो निष्फल कहे वह निष्फल वादी नास्तिकमती जैन मार्ग से दूर मालूम पड़ता है । फिर तीन बातों का निषेध किया है इस दृष्टि से तो निष्फल जान पड़ता है । यदि ऐसी है तो निष्फल कहते हुए क्यों शंका करते हो इत्यादि प्रकार से विचार करते हुए ये गृहस्थियों का दान जानने योग्य पदार्थ दोनों स्थान पर मालूम पड़ता है ।
श्री रायप्पसेणी सूत्र में सूर्याभ देवता ने भगवान से कहा 'मैं आपके साधुओ को नाटक दिखाऊँ ?' तब भगवान ने मौन रखा उसका फलितार्थ इस प्रकार है कि 'यदि हां कहें तो साब लगता है एवं ना कहे तो देवता की भक्ति जाती है ।' इसलिए मिश्र स्थान जानकर वीतराग देवता ने मौन साधना की । इस दृष्टि से तो गृहस्थी के दान में भी मौन ही कहा है, वह मिश्र स्थान ही है । यदि धर्म होवे तो साधु आज्ञा देवे, और पाप होवे तो निषेध करे । परन्तु यहां तो आज्ञा भी नहीं देवे, उसी भांति निषेध भी नहीं करे इस कारण तीसरा मिश्र पक्ष मालूम पड़ता है, और मिश्र स्थान में मौन साधना युक्त है । यहां तो दोनों बात प्रत्यक्ष दिखाई देती है अतः दया है वह पुण्य तथा जो ममता घटी वह भी पुण्य अन्य को देने से अन्य पुण्य प्रकृति सूत्र में कही है, उस दृष्टि से भी पुण्य है पर गृहस्थ का लेन देन सब सवय कार्य है । अतः श्री
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