________________
भी सावध कहा है । जिस प्रकार अमत्य मिश्र भाषा दोनों सावध, इम न्याय से गृहस्थ के दान को एवं अनुकम्पा आदि आठ दान को पुण्य पाप दोनों ज्ञेय पदार्थ जानने चाहिये परन्तु एकान्त पाप नहीं । एकांत पाप हो तो साधु किस प्रकार रखता है ? सूत्र में तो गृहस्थ के दान के लिए माधु को स्थान स्थान पर मौन साधना कहा है । श्री सूय डांग मूत्र के प्रथम श्रुत स्कन्ध के ग्यारहवें मोक्ष मार्ग नामक अध्ययन में ऐमा कहा है कि 'कोई राजा धर्म की बुद्धि से मतु आदि दान देता हुआ उत्सव करवाता हुआ वह मुनिराज से पूछे कि अहो ऋषिश्वर ! इस अनुष्ठान से हमें पुण्य होता है या नहीं ?' तव साधु पुण्य है ऐसा न कहे इसमें पुण्य नहीं है ऐसा भी नहीं कहे । क्योंकि इन दोनों प्रकार की भाषा में महा भय है। यदि पुण्य कहे तो बस स्थावर जीवों की हिंसा लगती है यदि कहे कि पुण्य नहीं तो अन्न आदि के अर्थी ( अतिथि ) लोगों के अन्न पानी की अन्तराय लगे, इसलिए दान की प्ररांमा करने वाला हिंसा का भागी तथा निषेध करने वाला अगीतार्थ एवं वृत्ति छेदने वाला कहलाता है । इसलिए पुण्य है अथवा नहीं ऐसी आस्तिक नास्तिक दोनों भाषा नहीं उच्चारे अपितु मौन रहे । दोनों में से एक भाषा बोलने पर क्या होता है ? उसे पाप कर्म की प्राप्ति होती है इसलिए अविधि से बोलना छोड़े । निर्वद्य भाषा