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(४) निराबाध सुख तो नहीं श्रासोच्छ्वास आवे, खेद उत्पन्न होवे, निवृत्ति उत्पन्न होवे उतना सुख होवे वह सुख प्राण । इस प्रकार से भाव प्राणों के १० उत्तर द्रव्य प्राण हुए जो सिद्ध के नहीं हैं ।
बट्टा पर्याप्ति द्वार- पर्याप्ति के द्वारा जीव आहार इत्यादि लेने की शक्ति प्राप्त करता है, जो वीर्यान्तिराय के क्षयोपक्षय से उत्पन्न होती है । पर्याप्त नाम कर्म के उदय से ६ पर्याप्ति होती है जो सिद्धों के नहीं ।
सातवां आयुष्य द्वार - आयुष्य सिद्ध अनादि अपर्यवस्थित स्थिति के धनी है ।
आठवां अवगाहना द्वार - सिद्धों की अवगाहना - चरम मनुष्य भव की जो अवगाहना है. उसमें से तीसरे भाग का अभाव हो उस स्थिति में कम से कम एक हाथ आठ अंगुल की और अधिक से अधिक तीन सौ तेतीस धनुष एवं बतीस अंगुल की ।
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नवां आगत द्वार - आगत- सिद्धों में एक मनुष्य की । दसवां गत द्वार - गत- सिद्धों की गति नहीं । ग्यारहवां गुणस्थान द्वार - गुणस्थान चउदह में से एक भी नहीं यह सिद्धों का परिचय हुआ ।
संसारी जीवों के चउदह भेद का परिचय निम्न प्रकार है : जीव का पहला भेद - 'सूक्ष्म एकेन्द्रिय का अपर्याप्ता'