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(१७६) २२. ॐ तालाब दृष्टांत द्वार* १. जीव रूप तालाब है, २. अजीव रूप जल, ३. आश्रव रूप जल आने का मार्ग (नाला) ,४. उसमें स्वच्छ जल आवे वह पुण्य, ५. गंदा जल आवे वह पाप है, ६. जल तथा तालाब एक रूप होवे वह बंध है, ७. आते हुए जल मार्ग (नाले) को रोके वह संवर है, ८- अरहर
आदि से पहिले का जल निकाले वह निर्जरा है ९- सर्व तालाब खाली हो जावे वह मोक्ष है । यह दृष्टान्त कहा है।
__ अब भाव द्वार की अपेक्षा कहते हैं जैसे पुरुष का चिंतामणी रत्न प्रमादवश तालाब में गिर पडा तब आव रोके बिना जल निकाले तो तालाब खाली नहीं होवे, और रत्न हाथ नहीं आवे, वैसे ही केवल ज्ञान तथा केवल दर्शन रूप रत्न जीव रूप तालाब में है, वह कर्म रूपी जल से 'ढका हुआ है । किन्तु वह मिथ्यात्वादि आश्रव रोके बिना अकाम निर्जरा, वाल तपस्यादि से कर्मों की निर्जरा करे । कर्म रूप जल निकाले परन्तु जीव रूप तालाब खाली नहीं होवे, परन्तु कोई चतुर पुरुष पहले से आव आदि रोक कर फिर रहट आदि के द्वारा जल निकालने से तालाब खाली होवे
और चिंतामणी रत्न हाथ लग जावे, वैसे ही जीव रूप तालाब के समकित आदि से आश्रव रूप जल मार्गरोके फिर तपस्यादि करके कर्म रूप जल निकाले तब केवल ज्ञान तथा.केवल दर्शन रूपी चिंतामणीरत्न हाथ में आवे और मुक्ति प्राप्त होवे।
.इति तालाब दृष्टांत द्वार समाप्तम् .