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रस, दो गंध, आठ स्पर्श, पांच संठाण, छः संघयण, छः संठाण, पांच शरीर, वय्यालीस भापा, धूलि, राख, चारमन के, चार वचन के, तीन शब्द, इत्यादि अजीव में समाविष्ट होवे २ । नौ प्रकार का पुण्य, चार शुभ कर्म, बय्यालीस पुण्य प्रकृति इत्यादि पुण्य में समाविष्ट होवे ३ । अट्ठारह पाप, आठ कर्म, पाप को ८२ प्रकृति इत्यादि पाप में समाविष्ट होवे ४ । पांच मिथ्यात्व, बारह अवत, पांच प्रमाद, पांच निन्द्रा, पांच इन्द्रिय, तेवीस विषय, पन्द्रह योग, छः लेश्या, पच्चीस कपाय, राग, द्वेप, मोह, तीन चेद, चार संज्ञा, तीन अज्ञान, बय्यासी निवृत्ति, पचपन करण, दो ध्यान, सात भय, आठ मद, तीम महामोहनी, चीस असमाधि के स्थान, इक्कीस सबला दोष, पच्चीस क्रिया. उन्नतीस पाप सूत्र, तैतीस आशातना, सात समुद्रघात, नौ अगप्ति, तेरह क्रिया के स्थान, सत्तरह असंयम, सत्तावन देत. बावन अनाचार, सैंतालीस दोष, अधर्म, अव्रत, अपच्चक्खाण इत्यादि आश्रव में समाविष्ट है ५। ।
पांच समकित, बारह व्रत, पांच महाव्रत, श्रीवक की ग्यारह पडिमा, मिनु की बारह पडिमा, दम चित्त समाधि. नौ वाड, बाइस परिपह, पांच समिति, तीन गुप्ति, सचरह प्रकार का संयम, अट्ठारह प्रकार का ब्रह्मचर्य, पच्चीस भावना, साधु के सत्ताइस गुण, बचीस योग संग्रह, उन