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कन्दोरा घड़ाया उसमें सोने के आकार का विनाश हुआ परन्तु स्वर्णपन का विनाश नहीं हुआ । ऐसे ही जीव की S अवस्था बदलती है पर जीव पन का विनाश नहीं होता । यहां कई एक ऐसा कहते हैं कि जो अनित्य ( अशाश्वत ) वस्तु जीव की पर्याय है वह जीव नहीं है, क्योंकि भगवती सूत्र के दूसरे शतक के दसवें उद्देश्य में धर्मास्तिकायादि पञ्चास्ति काय नित्य शाश्वत बनायी है इसलिये शाश्वता जीव है अशाश्वता जीव नहीं है । किन्तु ऐसा कहने वाले एकान्त पक्ष के मानने वाले हैं । वे अनेकान्त का उत्थापन करते हैं इसलिए मिथ्यादृष्टि कहलाते हैं क्योंकि श्री उत्तराध्ययन सूत्र के छंतीसवें अध्याय की वीं गाथा में कहा है कि धर्म, अधर्म, आकाश ये तीन अनादि अपर्यवसीत शाश्वत, नित्य है तथा जीव, पुद्गल व काल ये तीनों द्रव्य शाश्वत है तथा इनकी पर्याय अशाश्वत है । इस विषय में श्री भगवती सूत्र के नौमें शतक के तेतीस उद्देश्य में श्री भगवन्त ने जमाली से फरमाया कि 'सासए लोए जमाली असासए लोए जमाली, सासए जीवे जमाली, असासए जीवे जमाली' ये चार बोल बताये हैं. इस दृष्टि से जीव द्रव्य नित्य है पर्याय अनित्य है यहां पर्याय की अपेक्षा से जीव को अशाश्वत बताया है । इस अपेक्षा से जो जिसका द्रव्य, गुण पर्याय है वे उसी के कहलाते हैं, इस अपेक्षा से जीव को नित्य अनित्य