________________
(१४३) किसी स्थान पर अटकता नहीं है। इसका परिचय तो रूपी अरूपी द्वार में दिया है। सात तत्त्व जीव स्थापन करना; फिर तीन तत्त्व जीव स्थापन करना, चार तत्त्व अजीव स्थापन करना, अथवा एक तत्व जीव एक तत्व अजीव । तीन तत्व जीव के निज गुण है चार तत्व जीव के परगुण है, तथा एक तत्व जीव, एक तत्व अजीव, तीन तत्व जीव के पर्याय और चार तत्व अजीव के पर्याय है । .. मुख्य नय से परिचय करते हैं । जीव को जीव कहते हैं, संवर कहते हैं, निर्जरा कहते हैं, मोक्ष कहते हैं । अजीव का मजीव कहते हैं, पुण्य कहते हैं, पाप कहते हैं, आश्रय कहत है, बंध कहते हैं। पुण्य को अजीव, पुण्य, आश्रय और बंध ये चार कहते हैं । पाप को अजीव, पाप, आश्रय व बंध ये चार कहते हैं। आश्रव को अजीव, पुण्य, पाप,
आश्रय व बंध ये पांच कहते हैं । संवर को जीव, संवर, निजरा और मोक्ष ये चार कहते हैं। निर्जरा को जीव, संवर निजंग और मोक्ष ये चार कहते हैं | बंध को अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव और बंध ये पांच कहते हैं । मोक्ष को जीव संवर, निर्जरा और मोक्ष ये चार कहते हैं। जीव को जीव किस अपेक्षा से कहते हैं ? इत्यादि मय परिचय करवा देवें । यह मुख्य अपेक्षा से कहा है तथा दूसरी अपेक्षा से तो पहिले की तरह सब विचार कर ले।
॥ इति जीवा जीव द्वार समाप्तम् ॥