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(८७) वाले, उद्वग करने वाले बहुत मुंड "अप्प समणा भवि स्मंति" कहा है, फिर श्री उत्तराध्ययन सूत्र के उन्नीसवें अध्याय में अकेला "अप्प" कहे 'अप्पपुमं' तुमने कहा था कि साधु में भी क्लेश करने का स्वभाव लगता है इसीलिए कहा है । फिर श्री दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र में स्वधर्मी का क्लेश मिटाने का कहा है, फिर सोलह स्वप्न में भत्सर युक्त होगे । चवदचे स्वप्न में रत्न की कांति तेज होकर हीन देखी जिसके प्रभाव से भरत क्षेत्र एवं ऐरावत क्षेत्र के साधु चारित्र रुपी तेज से हीन देखे, क्लेश के करने वाले अविनय करने वाले, एक एक के अवगुणवाद बोलने वाले होंगे, ऐसा कहा है । अतः सभी साधु समान कैसे होंगे ?
किसी में बहुत गुण है कोई में कम गुण है परन्तु इनमें __ भी साधु है असाधु नहीं, हीरे की.खान तो यही है, इसी
में गुणवंत है कोई लक्ष रुपये का हीरा तो कोई निन्यानवें। हजार का हीरा तो कोई कम ज्यादा मूल्य का हीरो पर है सब हीरे ही । पहिले चौथे आरे में भी सब समान. नहीं हुये । पार्श्वनाथ भगवान की आर्याओ ने हाथ पैर धोये थे उन्हें भी गच्छ के बाहर नहीं कहा सुभद्रा ने बच्चे वच्चियों को हुलराये खिलाये उन्हें भी असाध्वी नहीं कहा । तो फिर कोई एक अतिचार देखकर, थोड़े में ही साधु को असाधु कहते हैं वे भारी वचन के चोलने वाले एवं दुर्लभ वोधी है ।