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" जैनतत्वमीमांसा । सो भव्य जीव होता है वह क्षायिक सम्यक्त्वको प्राप्त करता है, इसे निमित्तका बल जानना चाहिए ॥१०॥
उपाचानकी ओरसे उत्तर केबलि अरु मुनिराज के पास रहे बहु लोय ।
4 जाको सुलटयो धनी क्षायिक ताकों होय ॥११॥ केवली भगवान् और मुनिराजके पास बहुतसे लोग रहते है, परन्तु जिसका आत्मा सुलट जाता है उसे क्षायिक सम्यक्त्व होता है ॥११॥
निमिसकी ओरसे प्रश्न हिसादिक पापनि किये जीव नर्कमें जाहिं ।
जो निमित्त नहिं काम को तो इम काहे कहाहिं ॥१२॥ जो निमित्त कार्यकारी नहीं है तो यह क्यों कहा जाता है कि हिंसादिक पाप करनेसे जीव नरकमें जाते हैं ।।१२।।
उपादानको ओरसे उत्तर हिमामें उपयोग जहा रहे ब्रह्मके राच ।
तेई नर्कमें जात है मुनि नहिं जाहि कदाच ।।१३।। जहाँ आत्माका उपयोग हिंसामें रममाण होता है वही नरकमें जाता है, मुनि ( भावमुनि ) कदापि नरकमें नहीं जाते ॥ १३ ॥
निमित्तको ओरसे प्रश्न क दया दान पूजा किये जीव सुखी जग होय । My जो निमित्त झूठी कहो यह क्यो माने लोय ॥१४॥
दया, दान और पूजा करनेसे जीव जगमे सुखी होता है। यदि निमित्तको झूठा कहते हो तो लोग इसे क्यों मानते हैं ॥१४॥
उपाबानकी ओरसे उत्तर दया दान पूजा भली जगत माहिं सुखकार ।
जहं अनुभवको माचरण तह यह बन्ध विचार ॥१५॥ दया, दान और पूजा भली है तथा जगतमें सुखकी करनेवाली है। किन्तु जहाँ पर अनुभवके आचरणका महापोह करते हैं उस अपेक्षा विचार करने पर यह बन्धरूप ही है ऐसा जानना चाहिए ।।१५।।
[ दया, दान और पूजादिरूप रागांश सांसारिक सुखका कारण भले