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परिशिष्ट
उपादान-निमित्तसंवाद
___ [ भैया भगवतीदास जी] मंगलाचरणपूर्वक उपादान-निमित्तसंघाव कयनको प्रतिक्षा
पाद प्रणमि जिनदेवके एक उक्ति उपजाय ।
उपादान अरु निमित्तको कहे संवाद बनाय ॥१॥ जिनेन्द्रदेवके चरणोंको प्रणामकर तथा एक उक्तिको उपजाकर उपादान और निमित्तका संवाद बनाकर कहता हूँ॥१॥
पूछत है कोऊ तहाँ उपादान किह नाम ।
कहो निमिस कहिये कहा कबके हैं इह ठाम ॥२॥ संवादके प्रारम्भमें कोई पूछता है कि उपादान किसका नाम है और बतलाओ निमित्त किसे कहते हैं। ये दोनों इस लोकमें कबके हैं॥२॥
समाधान उपादान निज शक्ति है जिय को मूल स्वभाव ।
। है निमित्त परयोग तै बन्यो अनादि बनाव । ३।। उपादान अपनी शक्तिका नाम है, वह जीवका मूल स्वभाव है तथा पर संयोगका नाम निमित्त है। इन दोनोंका यह बनाव अनादिकालसे बन रहा है ॥३॥
निमित्तको गोरसे प्रश्न निमित्त कह मोकों सबै जानत है जगलोय ।
तेरो नाव न जान ही उपादान को होय ॥४॥ निमित्त कहता है कि जगके सब लोग मुझे जानते है, परन्तु उपादान कौन है इस प्रकार तेरा नाम भी कोई नहीं जानते ॥ ४ ॥
उपादानको ओरसे उत्तर उपादान कहै रे निमित्त तू कहा करै गुमान । मोकों जाने जीव वे जो है सम्यक्बान ॥५॥