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________________ अनेकान्त स्याहाइमीमांसा " ३७५ (५) द्रव्य स्वात् कषाय और अवक्तव्य है। यह पांचवा भंग है। इसमें प्रयुक्त हुआ स्यात् पद द्रव्यमें नोकषायपनेको घटित करता है। (६) द्रव्य स्थात् नोकपाय और अवक्तब्य है। यह छटा भंग है। इसमें प्रयुक्त हुमा स्यात् पद कषायपनेको घटित करता है। .. (७) द्रव्य स्यात् कषाय, नोकषाय और अवक्तव्य है। यह सातवाँ भंग है। इसमें प्रयुक्त हुमा स्यात् पद कषाय, नोकषाय और अवक्तव्य इन तीनों धर्मों की अक्रमवृत्तिको सूचित करता है। इससे विदित होता है कि प्रमाण सप्तभंगीका प्रत्येक भंग किस प्रकार अपूर्व धर्मके साथ समग्र वस्तुको सूचित करता है। इस दृष्टिसे देखा जाय तो ये सार्तो भंग अपुनरुक्त हैं यह सूचित होता है। इसीका . नाम स्याद्वाद है । तथा इसीको कथंचित्वाद भी कहते हैं। १४ अनेकान्त कथंचित् अनेकान्तस्वरूप है ___ इस प्रकार प्रमाण सप्तभंगीके द्वारा अनेकान्तस्वरूप वस्तुका कथन करनेके बाद अनेकान्तरूप वस्तु सर्वथा अनेकान्तरूप है या कथंचित् अनेकान्तरूप है इसे स्पष्ट करनेके लिये तत्त्वार्थवार्तिक अ०१ स०६ में शंका-समाधान करते हुए लिखा है__ शका-अनेकान्तमें यह विधि-प्रतिषेध कल्पना नहीं घटित होती। यदि अनेकान्तमें भी विधि-प्रतिषेध कल्पना घटित होती है तो जिस समय प्रतिषेध कल्पना द्वारा अनेकान्तका निषेध किया जाता है उस समय एकान्तकी प्राप्ति होती है । यदि अनेकान्तमें भी अनेकान्त लगाया जाता है तो अनवस्था दोष आता है, इसलिये वहाँ अनेकान्तपना ही बननेसे उसमें सप्तभंगी घटित नहीं होती ? समाधान-नहो, क्योंकि अनेकान्तमें भी सप्तभंगी घटित हो जाती है। यथा (१) स्यात् एकान्त है, (२) स्यात् अनेकान्त है, (३) स्यात् उभय है, (४) स्यात् अबक्तव्य है, (५) स्यात् एकान्त अवक्तव्य है, (६) स्यात् अनेकान्त अवक्तव्य है, (७) स्यात् एकान्त, अनेकान्त अवक्तव्य है। शंका यह कैसे? समाधान-प्रमाण और नयकी मुख्यतासे यह व्यवस्था बन जातो है । इसे स्पष्ट करते हुए लिखते हैं- .
SR No.010314
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherAshok Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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