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उत्तराध्ययनसूत्र अ २
एवं णच्चा ण सेवंति, ततुजं तणतज्जिया । ३५| किलिण्णगाए मेहावी, पंकेण व रएण वा । घिसु वा परियावेण, साथ णो परिदेवए | ३६ | वेज्ज णिज्जरापेहि, श्रारिय धम्मऽणुत्तरं । जाव सरीरभेउत्ति, जल्लं काएण धारए |३७| श्रभिवायण-मभुट्ठाण, सामी कुज्जा णिमतण | जे ताइ पडिसेवति, ण तेसि पीहए मुणी |३८| अणुक्कसाई श्रपिच्छे अण्णाएसी अलीलुए । रसेसु णाणुगिज्भेज्जा, णाणुतप्पेज्ज पण्णव |३६| से णूण मए पुव्वं, कम्माऽणाणफला कडा । जेणाह णाभिजाणामि, पुट्ठो केणइ कण्हुई |४०| अह पच्छा उइज्जन्ति, कम्माऽणाणफला कडा एवमस्सासि अप्पाण, णच्चा कम्मविवागयं । ४१| णिरद्वगम्मि विरो, मेहुणा सुमंवुडो । जो सक्खं णाभिजाणामि, धम्मं कल्लाण पावगं |४२ | तवोवहाण-मादाय, पडिमं पडिवज्जओ । एवंवि विहरत्रो मे छउमं ण नियदुइ |४३| णत्थि पूर्ण परेलोए, इड्ढी वावी तवस्सिनो | अदुवा वंचिग्रो-मित्ति, इइ भिक्खू ण चितए |४४ प्रभू जिणा श्रत्थि जिणा, प्रदुवा वि भविस्सइ । मुसं ते एवमाहंसु, इइ भिक्खू ण चितए |४५ | एए परीसहा सव्वे, कासवेण पवेइया ।
जे भिक्खूण विहम्मेज्जा, पुट्ठो केणइ कण्हुई । त्तिवेमि ४६ । || दुइअ परीसहज्भयण समत्त ॥२॥
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