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जैन स्वाध्यायमाला
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ज्ञानचन्द्र मुनि सम्प्रदाय मे, सूरज बनकर चमके ।
हाँ कीर्ति बहुत ही पाए । हो०७। पा कर आपको लगता जैसे, मैंने सब कुछ पाया। "पारस" ने चरणो मे आपके, तन मन सभी चढाया ।
हाँ दया आपकी चाहे । हो ।
वन्दन हम करते नित उठ कर, श्री समर्थ स्वामी को । सन्त शिरोमणि संघ के नायक, ज्ञान-गच्छ स्वामी को ।। आगम ज्ञाता बहुश्रुत पडित, भव्यो के तारणहारे । सूत्र न्याय से समाधान कर, शका दूर निवारे । जडावनन्दन, दु खनिकन्दन, मोक्ष पन्थ गामी को । ११ जिनचरणो मे प्रतिवादी ने, अपना मद विसराया । जिन चरणो मे सन्त सती ने, अपना शीष झुकाया । मुलतान सुत जाति कुल युक्त, धन्य मोक्ष कामी को ।। उत्कृप्ट क्रिया के आराधक, साधक सत्य जिनवाणी। ऐसी नीति रीति पालक, नही है कोविद शानी । धर्म दीपावे कीत्ति पावे, शिव पदवी कामी को 1३। जैसा सुन्दर नाम आपका, वैसे गुण के धारी। सेवा विनय क्षमा आदि मे, स्थान अनुपम भारी । समता धारी ममता मारी,सकल श्रेय कामी को ।४। युग्म रूप से ज्ञान क्रिया का, योग मिला है भारी ।