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जैन स्वाध्यायमाला
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प्ररूप्या, तथा साधुजी को असाधु और असाधु को साधु सद्दह्या प्ररूप्या, तथा उत्तम पुरुष साधु मुनिराज महासतियाजी की सेवा भक्ति मान्यता प्रादि यथाविधि नही की, नही कराई. नही अनुमोदी, तथा असाधुनो की सेवा भक्ति मान्यता आदि का पक्ष किया, मुक्तिमार्ग मे ससार का मार्ग, यावत् पच्चीस मिथ्यात्व सेवन किया, सेवन कराया, अनुमोदा, मन बचन और काया से, पच्चीस कषाय सबधी, पच्चीस क्रिया सबंवी, तेतीस आशातना सबंधी, ध्यान के १६ दोष, वदना के ३२ दोष, सामायिक के ३२ दोष, पौषध के १८ दोष सबधी मन वचन और काया से जो कोई पाप दोष लगा लगाया अनुमोदा, उसका मुझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कडं। महामोहनीय कर्मबध का तीस स्थानक को मन वचन और काया से सेवन किया, सेवन कराया, अनुमोदा, शील की नववाड तथा आठ प्रवचन माता की विराधनादि, श्रावक के इक्कीस गुण और बारह व्रत की विराधनादि मन वचन और काया से की, कराई, अनुमोदी, तथा तीन अशुभ लेश्या के लक्षणो की और बोलो की विराधना की, चर्चा वार्ता वगैरह मे श्री जिनेश्वर देव का मार्ग लोपा, गोपा, नही माना, अछते की थापना की, छते की थापना नही की और अछते की निषेधना नही की, छते की थापना और अछते की निषेधना करने का नियम नही किया, कलषता की, तथा छ प्रकार के ज्ञानावरणीय वध का बोल, ऐसे छ प्रकार के दर्शनावरणीय वध का बोल, आठ कर्म की अशुभ प्रकृतिवध का पचपन कारणो से, पाप की वयासी प्रकृत्ति बाधी,