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वृहदालोयणा
वचन काया से मुझे धिक्कार धिक्कार वारंवार मिच्छामि दुक्कड । वह दिन मेरा धन्य होगा, जिस दिन मैं नववाड सहित ब्रह्मचर्य शीलरत्न आराधगा, याने सर्वथा सर्वथा प्रकार से काम विकार से निवतूंगा। वह दिन मेरा परम कल्याण का होवेगा ।४।
पाचवां परिग्रह-सचित्त परिग्रह तो दास दासी, द्विपद, चतुष्पद, (पशु) आदि अनेक प्रकार के,और अचित्त परिग्रह-सोना, चादी, वस्त्र, आभूपण ग्रादि अनेक प्रकार के है। उनकी ममता मूर्छा की, क्षेत्र घर आदि नव प्रकार के बाह्य परिग्रह और चौदह प्रकार के आभ्यन्तर परिग्रह को रक्खा, रखवाया और अनुमोदा, तथा रात्रि भोजन, अभक्ष्य आहारादि संबधी पाप दोष सेव्या हो, वह मुझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कड । वह दिन मेरा धन्य होवेगा, जिस दिन सभी प्रकार के परिग्रह का त्याग कर ससार का प्रपंच से निवर्तुगा, वह दिन मेरा परम कल्याण रूप होवेगा ।
छठा क्रोध-क्रोध करके अपनी आत्मा को तथा पर आत्मा ___ को दुखी की 1६। . सातवा मान-अहंकार भाव लाया, तीन गारव और आठ मद आदि किया। __ पाठवा माया-धर्म सबंधी तथा ससार संबंधी अनेक कर्तव्यो मे कपट किया ।८।
नववा लोभ-मूभिाव लाया, आशा तृष्णा बाछा पादि की ।।