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वृहदालोयणा
नाथ तुमारी साख से, बारबार धिक्कार ।३। मैने छकायपन से छकाय की विराधना की, पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेन्द्रिय, तेन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पचेन्द्रिय, सन्नी, असन्नी, गर्भज, चौदह प्रकार के समुच्छिम आदि त्रस थावर जीवो की विराधना, मन वचन काया से की, कराई, अनुमोदी। उठते बैठते, सोते, हालते, चालते, शस्त्र वस्त्र मकानादिक उपकरण उठाते, धरते, लेते, देते, वर्तते वर्त्तावते, अप्पडिलेहणा दुप्पडिलेहणा संबधी, अप्रमार्जना दु. प्रमार्जना सबंधी न्यूनाधिक विपरीत पडिलेहणा सबधी और
आहार विहार आदि अनेक प्रकार के कर्तव्यो मे सख्यात असं. ख्यात और निगोद प्राश्रयी अनत जीवो के जितने प्राण लटे। उन सब जीवो का मैं पापी अपराधी हूँ । निश्चय करके बदले । का देनदार हूँ। सब जीव मेरे प्रति माफ करो, मेरी भूल चूक । अवगुण अपराध सब माफ करो।
देवसी राई, पक्खी, चौमासी और सम्वत्सरी संबंधी वारंवार मिच्छामि दुक्कडं । वारवार मैं क्षमाता हूँ। तुम सब क्षमा करो।
खामेमी सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ति मे सव्वभएसु, वेरं मज्झ ण केणइ ।१। वह दिन धन्य होगा जिस दिन मैं छ काय का वैर बदला से निवृत्त होऊगा । समस्त चौरासी लाख जीवायोनि को अभयदान देउगा, वह दिन मेरा परम कल्याण का होगा।
सुख दिया सुख होत है, दुख दिया दुख होय । पाप हणे नही अवर को, आपको हणे न कोय ।१।