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वडी साधु वन्दना
नायीं ना बन्धन, तत्क्षण नाख्या तोड़ 1801 घर कुटुम्ब कविलो, धन कचन नी कोड । मास मास खमण तप, टालसे भव नी खोड़। १ श्री सुधर्मा स्वामी ना शिष्य, धन धन जम्बू स्वामी । तजी पाठ अन्ते उरी, मात पिता धन धाम 1९२। प्रभवादिक तारी, पहुच्या शिवपुर ठाम । सूत्र प्रवर्तावी, जग माँ राख्यु नाम ।६३। धन्य ढढण मुनिवर, कृष्ण राय ना नन्द । शुद्ध अभिग्रह पाली, टाल दियो भव फन्द 1९४| वलि खन्दक ऋपि नी, देह उतारी खाल । परीपह सहीने, भव फेग दिया टाल ।९५] वलि खन्दक ऋपि ना, हुया पाँचसौ शिप्य । घाणी माँ पील्या, मुक्ति गया तज रीश ।६६। संभूतिविजय-शिप्य, भद्रबाहु मुनिराय । चौदह पूर्वधारी, चन्द्रगुप्त प्राण्यो ठाय ।९७। वलि आर्द्र कुमार मुनि, स्थूलिभद्र नन्दिपेण । अरणक अइमुत्तो, मुनीश्वरो नी श्रेण ।१८। चौवीसे जिनना, मुनिवर सख्या अठावीश लाख । ऊपर सहस अडतालीम, सूत्र परम्परा भाख TBSI कोई उत्तम वाँचो, मोढे जयणा राख । उघाड़े मुख वोल्या, पाप लगे इम भाख ११००। धन मरुदेवी माता, घ्यायो निर्मल ध्यान । गज होदे पायो, निर्मल केवलज्ञान ।१०१