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जैन स्वाध्यायमाला
वलि कातिक सेठे, पडिमा वही शूरवीर । जम्यो महोरा ऊपर, तापस बलतीर खीर ।३३। पछी चारित्र लीडूं, मित्र एक सहस्र आठ धीर । मरी हुआ शक्रेन्द्र, च्यवि लेसे भव तीर ।३४। वलि राय उदायन, दियो भाणेज ने राज । पछी चारित्र लेडने, सारया आतम काज ।३५॥ गगदत्त मूनि आनन्द, तारण तरण जहाज । कौशल मुनि रोहा, दियो घणाने साज ।३६। धन्य सुनक्षत्र मुनिवर, सर्वानुभूति अणगार। पाराधक होइ ने, गया देवलोक मंझार ।३७। चवि मुक्ति जासे, वलि सिंह मुनीश्वर सार । बीजा पण मुनिवर, भगवती माँ अधिकार ३८१ श्रेणिक ना बेटा, म्होटा मुनिवर मेघ । तनि आठ अन्तेउर, आण्यो मन सवेग ।३६। वीर पै व्रत लइने, बाँधी तप नी तेग । गया विजय विमाने, चवि लेसे शिव वेग ।४०। धन्य थावच्चा पुत्र, तजी बत्तीसे नार । तेनी साथे निकल्या, पुरुष एक हजार ४१॥ शुकदेव सन्यासी, एक सहस शिष्य लार । पचशय सु शैलक, लीघो संजमभार ।४२। सब सहस्र अढाई, घणा जीवो ने तार । पुंडरिक गिरि ऊपर, कियो पादपोपगमन संथार ।४३॥ आराधक हुई ने, किधो खेवो पार ।