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जन स्वाध्यायमाला
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फैले प्रेम परस्पर जग मे, मोह दूर पर रहा करे । अप्रिय कटक कठोर शब्द नहिं, कोई मुख से कहा करे ।। बनकर सव 'युग वीर" हृदय से देशोन्नति रत रहा करे । वस्तु स्वरूप विचार खुशी से, सब दु ख सकट सहा करे ।। ।।इति।।
॥लघु साधु वन्दना॥ साधुजी ने वदना नित नित कीजे, प्रात उगते सूर रे प्राणी । नीच गति माँ ते नही जावे. पावे ऋद्धि भरपूर रे प्राणी। साधु ।। मोटा ते पच महाव्रत पाले, छह कायारा प्रतिपाल रे प्राणी। भ्रमर भिक्षा मुनि सूझती लेवे, दोष बियालीस टाल रे प्राणी ।२। ऋद्धि सम्पदा मुनि कारमी जाणी, दीधी ससार ने पूठ रे प्राणी। या पुरुषा री सेवा करता, पाठ करम जाय टूट रे प्राणी। साधु ।३। एक एक मुनिवर रसना त्यागी एक एक ज्ञान भण्डार रे प्राणी। एक एक मुनिवर वैयावच वैरागी,जेना गुणानो नावे पार रे प्राणी॥ गण सत्तावीस करीने दीपे, जीत्या परीसा बावीस रे प्राणी। बावन तो अनाचार जो टाले तेने नमावू मारूं शीश रे प्राणी ।।५॥ जहाज समान ते संत मुनिश्वर, भव्य जीव बैठे आय रे प्राणी । पर उपकारी मुनि दाम न माँगे, देवे मुक्ति पहुचाय रे प्राणी ।६। इण चरणे जीव साता पावे, पावे ते लीलविलास रे प्राणी। जन्म जरा ने मरण मिटावे,नावे फरी गर्भावास रे प्राणी । साध।७। एक वचन श्रीसतगुरु करो, जो पैठे दिल माय रे प्राणी । नरक निगोद मां ते नही जावे, एम कहे जिन राय रे प्राणी ।। प्रात उठी ने उत्तम प्राणी, सुणे साधुजी रो व्याख्यान रे प्राणी।