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जैन स्वाध्यायमाला
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सङ्ख्येयाऽसङ्ख्येयाश्च पुद्गलानाम् | १० | नाणो. १११। लोकाकाशेऽवगाह |१२| धर्माधर्मयो कृत्स्ने | १३ | एकप्रदेशादिषु भाज्य पुद्गलानाम् | १४ | असङ्ख्येयभागादिषु जीवानाम् | १५ | प्रदेशसहारविसर्गाभ्या प्रदीपवत् | १६ | गतिस्थित्युपग्रहो धर्माऽधर्मयोरुपकार | १७| ग्राकाशस्याऽवगाह | १८ | शरीरवाड्मन.प्राणापाना पुद्गलानाम् | १६ | सुखदुखजीवितमरणोपग्रहाश्च | २० | परस्परोपग्रहो जीवानाम् | २१ | वर्त्तना परिणाम क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य । २२) स्पर्शरसगन्धवर्णवन्त. पुद्गला; |२३| शब्द बन्ध सौक्ष्म्यस्थौल्य संस्थान भेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च | २४| अणव स्कन्धाश्च | २५ | सघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते ।२६। भेदादणु | २७| भेदसघाताभ्या चाक्षुषाः |२८| उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत् । २६ । तद्भावाव्यय नित्यम् |३०| अर्पितानपित सिद्धे | ३१ | स्निग्धरूक्षत्वाद्बन्ध |३२| न जघन्यगुणानाम् |३३| गुणसाम्ये सदृशानाम् | ३४ | द्वयधिकादिगुणानां तु । ३५। बन्धे समाधिको पारिणामिको | ३६ | गुणपर्यायवद् द्रव्यम् ||३७| कालश्चेत्येके |३८| सोऽनन्तसमय | ३६ | द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा |४०| तद्भाव परिणाम |४१ | अनादिरादिमाश्च ॥४२ | रूपिण्वादिमान् |४३| योगोपयोगी जीवेषु
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॥ इति पञ्चमोऽध्याय ॥
॥ षष्ठोऽध्यायः ॥
कायवाङ्मन कर्म योग | १ | स आस्रवः | २ | शुभः