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जैन स्वाध्यायमाला
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हम्मति भत्तपाणेसु, तम्हा भिक्खू न पयावए ।११। विसप्पे सव्वनो धारे, बहुपाणिविणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोइं न दीवए ।१२। हिरण्ण जायरूव च, मणसा वि न पत्थए। समलेठुकचणे भिक्खू , विरए कयविक्कए ।१३। किणतो कइयो होइ, विक्किणतो य वाणिो। कयविक्कयम्मि वट्टतो, भिक्खू न भवइ तारिसो ।१४। भिक्खियन्वं न केयन्वं, भिक्खुणा भिक्खुवत्तिणा। कयविक्कयो महादोसो, भिक्खवत्ती सुहावहा ।१५॥ समुयाण उछमेसिज्जा, जहासुत्तमणिदिय । लाभालाभम्मि सतुझें, पिण्डवाय चरे मुणी ।१६। अलोले न रसे गिद्धे, जिब्भादंते अमच्छिए। न रसट्ठाए भुजिज्जा, जवणट्ठाए महामुणी ।१७। अच्चण रयण चेव, वंदण पूयण तहा। इड्ढीसक्कारसम्माण, मणसा-वि न पत्थए ।१८। सुक्कज्झाण जियाएज्जा, अणियाणे अकिंचणे । वोसट्टकाए विहरेज्जा, जाव कालस्स पज्जयो ।१९। निज्जहिऊण आहार, कालधम्मे उवट्ठिए।। जहिऊण माणुस बोदि, पहू दुक्खा विमुच्चई ।२०। निमम्मे निरहंकारे, वीयरागो अणासवो। संपत्तो केवल नाणं, सासय परिणिन्वुए ।२१॥
॥ अणगारज्झयण सम्मत्त ॥३५॥