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जैन स्वाध्यायमाला
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जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्ख । दुद्दतदोसेण सएण जंतू, न किंचि फासं अवरुज्झई से १७७। एगंतरत्ते रुइरसि फासे, अतालिसे से कुणई परोसं । दुक्खस्स सपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।७८॥ फासाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिछे।७६) फासाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विप्रोगे य कह सुह से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ।८० फासे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुद्धिं । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले पाययई अदत्त ।८१॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, फासे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुस वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।।२। मोसस्स पच्छा य पुरत्थरो य, पोगकाले य दुही दुते । एवं अदत्ताणि समाययंतो, फासे अतित्तो दुहियो अणिस्सो।८३। फासाणुरत्तस्स नरस्स एव, कत्तो सुह होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेवि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्ख ।८। एमेव फासम्मि गो परोसं, उवेइ दुक्खोहपरंपरायो। पदुदृचित्तो य चिणाइ कम्म, ज से पुणो होइ दुहं विवागे।८॥ फासे विरत्तो मणुप्रो विसोगो, एएण दुक्खोहपरपरेण । न लिप्पई भवमझेवि सतो, जलेण वा पोक्खरिणी पलास ।८६। मणस्स भावं गहण वयति, त रागहेउं तु मणुन्नामाहु । तं दोसहेउ अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स बीयारागो।७। भावस्स मण गहणं वयंति, मणस्स भावं गहण वयंति ।