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उत्तराध्ययन सूत्र म २६
कायसमाहारणयाए ण चरित्तपज्जवे विसोहेइ, चरित्तपज्जवे विसोहित्ता ग्रहक्खायचरित्तं विसोहेइ । अहक्खायचरित्तं विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ । तो पच्छा सिज्झइ वुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वायइ सव्वदुखाणमतं करेइ ।
५६ नाणसपन्नयाए ण भते ! जीवे कि जणयइ ? नाणसपन्नयाए ण जीवे सव्वभावाहिगमं जणयइ । नाणसंपन्ने ण जीवे चाउरते ससारकतारे न विणस्सइ ।
जहा सूइ ससुत्ता, पडियावि न विणस्सइ।
तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सइ ।। नाण-विणय-तव- चरित्त-जोगे संपाउणइ ससमय-परसमयविसारए य संघायणिज्जे भवइ ।
६० दसणसपन्नयाए णं भते ! जीवे कि जणयइ ? दंसणसपन्नयाए ण भवमिच्छत्तछेयण करेइ, परं न विज्झायइ । परं अविज्झाएमाणे अणत्तरेण नाणदसणेण अप्पाणं सजोएमाणे सम्म भावेमाणे विहरइ।
६१ चरित्तसंपन्नयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ? चरित्तसंपन्नयाए णं सेलेसीभाव जणयइ । सेलेसि पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मं से खवेइ । तमो पच्छा सिज्मा बज्झा मुच्चइ परिनिव्वायइ सव्वदुक्खाणमतं करेइ।।
६२ सोइदियनिग्गहेणं भते । जीवे कि जणयइ ? सोईदियनिग्गहेण मणुनामणुन्नेसु सद्देसु रागदोसनिग्गहं जणयइ । तप्पच्चइयं कम्मं न वधइ, पुत्रवद्धं च निज्जरेइ ।
६३ चक्खिदियनिग्गहेण भते ! जीवे कि जणयइ ? चक्खि