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जैन स्वाध्यायमाला
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॥ खलुंकिज्जं सत्तवीसइमं अज्झयणं ॥ २७ ॥
थेरे गणहरे गग्गे, मुणी आसि विसारए । आइण्णे गणिभावम्मि, समाहिं पडिसधए । १ वहणे वहमाणस्स, कतारं अइवत्तई । जोगे वहमाणस्स, ससारो अइवत्तई |२| खलुके जो उ जोएइ, विहम्माणो किलिस्सई । श्रसमाहिं च वेएइ, तोत्तो से य भज्जई | ३ | एग उसइ पुच्छम्मि, एग विधइ भिक्खणं । एगो भजइ समिल, एगो उप्पहपट्टि |४| एगो पडइ पासेणं, निवेसइ निवज्जई | उक्कुद्दइ उप्फिडइ, सढे बालगवी वए |५| माइ मुद्धेण पडइ, कुद्धे गच्छे पडिप्पहं । मय लक्खेण चिट्ठई, वेगेण य पहावई | ६ | छिन्नाले छिदई सेल्लि, दुद्दतो भजए जुग । से विय सुस्सुयाइत्ता, उज्जहित्ता पलायए |७| खलुड्डा जारिसा जोज्जा, दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजाणम्मि, भजंति धिइदुबला || इड्ढीगारविए एगे, एत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे, एगे सुचिरकोहणे || भिक्खालसिए एगे, एगे प्रमाणभीरु ।
द्वे एगे अणुसासम्मि, हेऊहिं कारणेहि य । १० सोऽवि अतरभासिल्लो, दोसमेय पकुब्वई ।