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जनासद्धांतसंग्रह। क्षुषा तृषा भय जन्में नरो मंति, रोग शोक रति अरति महा। विस्मये खेद स्वेदै मैंदै निद्रों, रोग द्वेषे मिल मोहे दहा ॥ इन अष्टादश दोषरहित नित, इन्द्रादिक पूजतं आई। :
. . .. . सबजन मिल ॥१॥ दूने सिद्ध सदा सुखदाता, सिद्धशिलापर राजत हैं। सम्यक्दशन ज्ञान वीर्य अरु, सूक्ष्मपणाका छानत हैं ।। अगुरुलघू अवगहनशाकै घर, बाधाविन अशरीरा हैं। . तिनका सुमरण नित्य कियेतें, शीघ्र नशत भवपीरा हैं। . .. या. कारण नितं चित्तशुद्ध कर भमहु सिद्ध शिवके राई । .
. . . . . . सबजन मिल० ॥ १ ॥ तीने श्री.आचार्य परमगुरु छत्तिस गुणके धारी हैं। दर्शन ज्ञान चरण तप वीरन पंचाचार-प्रचारी हैं। द्वादशतप दशधर्म गुप्तित्रय, षट् आवश्यक नित पालें। सब मुनिजनकों प्रायश्चित दें, मुनिव्रतके दृषण टालें ॥ ऐसे श्री आचार्य गुरुनकी, पूजा करिये चित लाई।
. . . . . . . . सबनन मिल ॥ ३ ॥ चौथे श्रीउवझायचरणपंकजरज, सुखदा भविजनको । ग्यारह अंगसु पूर्वचतुर्दश, पढ़ें पढावें मुनिगणको ॥ मुनिके सब आचरण आचरें, द्वादश तपके धारी हैं। स्यादवाद सुखकारी विद्या, सबंजगमें विस्तारी हैं। ऐसे श्रीउवझाय गुरुनके चरणकमल पूनहु भाई।
. .. संवजन मिल ॥