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जैनसिद्धांतसंग्रह। । [४५७ जय फणिपति वंदित गुणमंडित, फन्द हरण मुखकरन अखंडित ॥ जय बलवीर विभाव विहीना, बर्द्धमान वद्धित गुण लीना जय भगवन्त संत मन रंजन, भव्य कमक रवि भ्रमतम भनन ॥ जय मङ्गलमयमंगल कारी, अगन मात्म निन निधि मुखकारी। नय यतिपति यश घर सुखरासी, यथाख्यात चारित्र प्रकाशी ।। जय रमेश रमणीय स्वरूपा, रत्नत्रयनिषिदायक भूपा। जय ललाम गुण धाम अनुपा, लक्ष्मीपति लक्षित चिद्रूपा ॥ जय यमुषा वत्सल मुनि भावन, वस्तु स्वभाव धर्म दर्शावन । जय शशिभविजन कुमुदविकाशी, शमकर मोह महातम नाशी ॥ जय षटभेदभाव विज्ञानी, षट्कर्तव्य निरूपक ज्ञानी । नय सर्वज्ञ सफल हितकारी, सन्शय विभ्रम मोह निवारी॥ नय हरिहर्षन साधु प्रवीना, हलघर हर गुण जपत नवीना।
दोहा-क्षेमंकर त्रिपुरारि तुम, ज्ञायक त्रिजग महान । ___ गुण अनन्त गणधर अगम, "मणि" किम करै बखान || जे भव्य नित्य पवित्र होकर मष्ट द्रव्य मुल्यायकें । भगवन्त श्री मरहंतकी पूजा करें हरपायके । ते पुन्यनिधि संचय करें इस लोक यश मुख पायके । तप धार पुन सबकम हन निज थक वर्षे शिव मायकें।
इत्याशीर्वादः। इति श्री पं० मुन्नालालजी महरोनी छत परहंत पूना संपूर्ण ।