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जनसिद्धांतसंग्रह । [१६९ चित्ते कुर्वनिरवधिमुखज्ञानहग्वीर्य रूपं देव त्वां य: समयनियमादादरेण स्तवीति । श्रेयोमाग स खलु सुकृति तावता पूरयित्वा कल्याणानां भवति विषयः पञ्चधा पञ्चितानाम् ॥२४॥ भक्तिप्रहमहेन्द्रपूजितपद त्वत्कीर्तने न क्षमाः, सूक्ष्मज्ञानडशोऽपि संयमभृतः के हन्त मन्दा वयम् । अस्माभिः स्तवनच्छलन तु परस्त्वय्यादरस्तन्यते स्वात्माधीनसुखषिणां स खलु नः कल्याणकल्पद्रुमः॥१५॥ वादिराजमनु शन्दिकलोको वादिरानमनु तार्किकसिंहः । वादिराजमनु काव्यकृतस्ते वादिराजमनु भव्यसहायः ॥ १६ ॥
___इति श्रीवादिराजकृतमकीमावस्तोत्रम् : " : ।
{२] स्वयंभूस्तोत्रमा राजविष जुगलनि. सुख किया। रान त्याज भवि शिवपद लिया। स्वयंवोध स्वंभू भगवान | वनों आदिनाथ गुणखान ॥ १ ॥ इन्द्र क्षीरसागरमल लाय । मेरु न्हवाये गाय बनाय | मदन विनाशक सुख करंतार । बंदी अमित अजितपदकार ॥२॥ शुक्लध्यानकरि करम विनाशि | घात अघाति सकल दुखराशि । लह्यो मुकतिपद सुख अविकार । वंदौ शंमव भवदुख दार ॥३॥ माता पच्छिम रयनमंझार । सुपने सोलह देख सार । भूप पूछि फल मुनि हरषाय । वंदौं अभिनंदन मनलाय ॥४॥ सब कुवादबादी सरदार । भीते स्यादवाद धुनिधार ।। जैनधरम परकाशक स्वाम ! सुमतिदेवपद करहुँ प्रनाम ॥१॥ गर्भअगाऊ धनपति आय । करी नगरशोमा अधिकाय ॥ वर्षे रतन पंचदश मास | नौं पदंमप्रभु-सुखकी रास ॥ ६॥