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जैन सिद्धांतसंग्रह । [३०९ (३) मापा स्तुतिपाठ। 'म तरणतारण भवनिवारण, भविकमन आनंदनों ।
श्रीनाभिनंदन नगलवंदन, आदिनाथ. निरंजनो ॥॥ तुम भादिनाथ अनानि सेऊं, सेय पद पूना करूं। . कैलासगिरिपर रिषभनिनवर, पदकमल हिरदै धरूं ॥ २ ॥ तुम अंजितनाथ अनीत जीते, अष्टकर्म महाबली । यह विरद मुनकर शरण आयो, कपां कीजे नाथनी ||३|| तुम चंद्रवदन सुं चंद्रकच्छन, चंद्रपुरि परमेश्वरो । महांसेननंदन, जगंतवेदन, चंद्रनाथ निनेश्वरों ॥ ४ ॥ तुम शांति पांच वल्याण पूनों, शुद्ध मनवंचायजू। दुर्भिक्ष चोरी पापनाशन, विघा नाय पलायन ॥१॥ तुमबाल ब्रह्म विवेकसागर, भव्यकमक विकाशनो। श्रीनेमिनाथ पवित्र दिनकर, पापतिमिर विनाशनो ॥६ भिंन तनी राजुल रॉजरन्या, कामसैन्या वश करो। चारित्र थ चदि भये दुलह, नाय शिरमणी वरी ॥ ७ ॥ कंदर्प दर्प नसर्पलच्छन, कमठ शठ निर्मल कियो। अश्वसेननन्दन जगतबदन, सकलसंध मंगल कियो ॥ ८॥ जिन घरी बालकपणे दीक्षा, कमठान विदार। ..। श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्रक पद, मैं नमो शिधारक ॥९॥ तुम कर्मधाता मोसदाता, दीन जानि दया करो। सिद्धार्थनन्दन जगतवन्दन, महावीर जिनेश्वरी ॥१॥ छत्र तीन सोई सुग्नु मोहे, वीनती अवधारिये । कर जोडि सेवक वीनवे प्रमु, भावागमन निवारिये ॥११॥