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. २२] जैनासिदांतसंग्रह। ज्यादे इतना है कि मुनियोंके महानत होते. हैं, श्रावकों के अणुव्रत अर्थात् शक्ति अनुसार। '
११ प्रतिमा-१ दर्शनप्रतिमा, २ व्रत, ३ सामायिक, 'प्रोषधोपवास, ५ सचित्तत्याग, १ रात्रिभुक्ति अथवा दिवा मैथुन त्याग, ७ ब्रह्मचर्य, ८ आरम्भ त्याग, ९ परिग्रहत्याग, १० अनुमति त्याग, ११ उद्दिष्ट त्याग ।
चार दान-आहारदान,औषधदान,शास्त्रदान,अमयदान। यह ४ दान श्रावकको करने योग्य हैं। ३ रत्नत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकूचारित्र ।
यह तीन रल श्रावकके धारने योग्य हैं। इनका खुलासा (अर्थ) जैन बाल गुटकेके दूसरे भागमें सम्यक्तके वर्णनमें लिखा है। इनका नाम रत्न इस कारणसे है कि जैसे सुवर्णादिक सर्व धनमें रल उत्तम अथात् बहुमूल्य होता है इसी प्रकार कुल नियम, व्रत, तपमें यह तीन सर्वमें उत्तम हैं। जैसे कि विना अंक विन्दियां किसी कामकी नहीं इसी प्रकार वगैर इन तीनोंके सारे व्रत नियम कुछ भी फलदायक नहीं हैं। यह तीनों मानिन्द शुरूके अंकके हैं इसलिये इन तीनोंको रत्न माना है।
दातारके २१ गुणा-१ नवधामक्ति, गुण, ५आभूषण।
यह ११ गुण दातारके हैं अर्थात् पात्रको दान देनेवाले दातामें यह २१ गुण होना चाहिये।
दातारकी नवधा भक्ति-पात्रको देखकर बुलाना, उच्चासन पर बैठौना, चरण धोना, चरणोदक मस्तक पर चढ़ाना,