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२८०1 जैन सिद्धांतसंग्रह।
अथाष्टक । छन्द अष्टपदी। क्षीरोदधिसम शुचि नीर, कंचनमृग मरौ । प्रमु वेग हरौ भवपीर, यात धार करौं । श्रीवीर महा अतिवार, सन्मतिनायक हो । जय बर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो। ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय जन्मारामृत्युविनाशनाय नलं ॥१
मलयागिरचन्दन सार, केसरसंग घसौं । प्रनु मच आताप निवार, पूजत हिय हुलसौं । श्रीवीर० ॥ जय वर्द्धमान ॥ ॐ हीं श्रीमहावीरमिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदन नि० ॥२
तंदुलसित शशिसम शुद्ध, लीने थारभरी । तमु पुन घरौं अविरुद्ध, पाऊं शिवनगरी ॥ श्रीतीर०, जय बर्द्धमानः ॥ ३ ॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि० ॥३॥
तुरतरुके सुमनसमेत सुमन सुमन प्यारे । सो मनमथमंजन हेत, पूंजूं पद थारे ।। श्रीवीर० ॥ जय वर्द्धमान ॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय कामबाणविवंशनाय पुप्पं नि ?
रसरजत सनत सध, मजत थार मरी। पद जज्जत रज्जत अध, भजत भूख भरी॥ श्रीवीर ॥ जयवद्धमान !! ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय वैध नि० ॥५॥
तमखंडित मंडित.नेह, दीपक जोवत हूं। तुम पदतर हे सुखगेह, अमतम खोबत हूं। श्रीधीर० ॥ नय वर्धमान ॥ . ॐ श्रीमहावीरीजनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीप नि०१६) __ हरिचंदन अगर कपूर, चूरि सुगन्ध करे। तुम पदतर खवत भूरि, आठौं कर्म जरे ।। श्री वीर• ॥ जय वर्द्धमान ॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरनिनेन्द्राय अटफर्मावध्वंसनाय धूपं नि० ॥७॥