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२५४] जैनसिद्धांतसंग्रह। पहला भाचागंग वखानो। पद माटादश सहस प्रमानो। दूमा सुत्रक मामिलापं । पद छत्तीस सहस गुरु मापं ॥१॥ सीमा ठाना भंग सुनाना सहस बियालिस पदारषानं ॥ चौथो समवायांग निहारं । चौसठ सहस लाख इकधारं ॥२॥ पंचम व्याख्यामगपति दरशं । दोय लाख अट्ठाइस सहसं। छट्ठा ज्ञातृकया विसतारं । पांचलाख छप्पन हजारं ॥३॥ सप्तम उपासकाध्ययनंग । सत्तर सहस ग्यारलख मंगे। माष्टम मंतकदस ईस । सहस पठाइस लाख तेइस ॥१॥ नवम अनुत्तरदश मुविशालं । लाख वानवे सहस चवाल। दशम प्रभव्याकरण विचारं । काख तिरानः सोक हमारं ॥५॥ ग्यारम सुत्रविपाक मु भाखं । एक कोड़ चौरासी लाखें । चार कोड़ि भरु पंद्रह लाख । दोहमार सब पद गुरुशाख ॥६॥ द्वादश दृष्टिवाद पनभेदं । इकसौ आठ कोड़ि पन वेदं ॥ मड़सट लाख सहस छप्पन हैं। सहित पंचपद मिथ्या हन हैं। इक सौ बारह कोड़ि वखानो । लाख तिरासी कर जानो। -ठावन सहस पंच मषिकाने । द्वादश मङ्ग सर्व पद माने ॥६॥ कोड़ि इकावन माठ हि लाख | सहस चुरासी छहसौ भाख ॥ साढ़े इकीस श्लोक बताये । एक एक पदके ये गाये ॥१०॥ 'घत्ता-मा पानीके ज्ञानमें, सुझ लोक अलोक । 'धानत' मग नयवंत हो, सदा देत हों घोक।
इति सरस्वती पूजा।।
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