________________
जैनासिद्धांतसंग्रह। [२४१ (१५) श्रीनन्दीवरपूजा। अडिल्लं-सरव पर्वमें बड़ो अठाई पर्व हैं।
नन्दीश्वर सुरं जाहिं लेय वसु दरब है ।। हमें शक्ति सो नाहिं इहां करि थापना ।
पूनों जिनगृह प्रतिमा है हित आपना । ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे द्विपंचाशजिनालयस्थभिनप्रतिमासमूह। अत्र अवतर अवतर । संवौषट् । ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे द्विपञ्चाशजिनालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वाहीपे द्विपञ्चाशजिनालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! भत्र मम सन्निहितो भव भव । वषट् ।
कंचनर्माणमय भृगारं, तीरथनीरभरा । तिहुँ धार दयी निरंवार; नामन मरन जरा ॥
नंदीश्वर श्रीजिनधाम, बावन पुंन करों। । वसुदिन प्रतिमा अमिराम, आनंदभाव घरों ॥१॥ . ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वग्हीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षणे द्विचाश. जिनालयस्थनिनप्रतिमाम्यो जन्मनरामृत्युविनाशनाय नलं निवपामीति स्वाहा ॥ १ ॥
भवतपहर शीतलवास, सो.चंदननाहीं। . :प्रभु यह गुन कीने सांच, भायो तुम ठगही ॥ नंदी० ॥२॥'
ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्व-द्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपञ्चाक्ष. जिनालयस्थनिनप्रतिमाम्यो । संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥
१६