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२३२] जैनसिद्धांतसंग्रह । अमल अखंड सुगंध सुहाय • अच्छतसौं पूजौं जिनराय ।
महांसुख होय, देखे नाथ परमसुख होय । पांचो० ॥शा ॐ ही पञ्चमेरुसम्बन्धिनिनचैत्यालयस्थबिम्बेभ्यो अक्षतान् । बरन अनेक रहे महकाय, फूलनसौं पूनों जिनराय । ___ महांसुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ।। पांचों ॥४॥
ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिमिनचैत्यालयस्थजिनविम्बेभ्यः पुप्पं ।। मनवांछित बहु तुरत बनाय | चरुसौं पूनौं श्री जिनराय । __महांसुख होय देख नाथ परम सुख होय ॥ पांचों ॥५॥
ॐ ह्री पंचमेरुसम्बन्धिजिनचल्यालयस्थमिनविम्बेभ्यो नैवेद्यं ॥ . तमहर उज्जल नोति नगाय दीपसौं पूनौं श्रीमिनराय ।
महांमुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥पांचों० ॥६॥ ॐही पंचमेरुसम्बन्धिनिनचैत्यालयस्थगिनबिम्बेभ्यो दीपं ।। खेडं अगर परिमल अधिकाय । धूपसौं पूर्जी श्रीजिनराय । ___ महांमुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥ पांचों० ॥७॥
ॐ ह्री पञ्चमेरुसम्बन्धिनिनचैत्यालयस्थनिन बिम्बेभ्यो धूपं ।। मुरस सुवर्ण सुगंध सुमाय । फलसौं पृनौं श्रीजिनराय ।
महांसुख होय, देख नाथ परम सुख होय । पांचों ॥6॥ ॐ ही पञ्चमेरुसम्बन्धिनिनचेत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यः फलं ।। माठ दरवमय अरघ बनाय । 'धानत' पूनों श्रीनिनराय। . • महामुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥पांचों ॥९॥ ॐही पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यो अध्ये ॥