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जैन सिद्धांतसंग्रह। भय तृष्णाहारी रमण राम । निम परणतिमें पायो विराम ॥ भय मानदघन कल्याणरूप । कल्याण करत सबको मनूप ॥ नय मदनाशन नयवान देव । निरमद विरचित सब करत सेव ॥५॥ 'जय नेय विनयलालस ममान | सब शत्रु मित्र मानत समान ॥
नय कृशितकाय तपके प्रमाव । छवि छटा उड़ति मानंददाय ॥६॥ 'नयमित्र सकल नगके सुमित्र । अनगिनत अधम कीने पवित्र । •जय चन्द्रवदन रानीव-नयन । कवई विकथा बोलत न वयन ॥७॥ नय सातों मुनिवर एक सङ्ग। नित गगन गमन करते अमङ्ग । जय भाये मथुरापुरमशार | तह मरीरोगको गति प्रचार || जय जय तिन चरणों के प्रसाद | सब मरी देवकृत भई बाद ॥ मय कोक परे निर्भय समस्त । हम नमत सदा तिन मोर हस्त ॥९॥ जय भीषम ऋतु पर्वतमझार । नित करत मतापन योग सार ।। भय तृषा परीषह करत जेर । कहुं रंच चलत नहिं मन सुमेर ॥१. जय मूल पठाइस गुणन पार । तप उग्र तपत मानन्दकार ॥ भय वर्षा ऋतु में वृक्षतीर । तह मति शीतक झेल समीर ॥११॥ -भय शीत काल चौपट मझार । के नदी सरोवर वट विचार ॥ भय निवसतध्यानारूढ़ होय । रचक नहिं मटकत रोम कोय ॥१२
भय मृतकासन बचासनीय । गौदहन इत्यादिक गनीय .॥ . नय भासन नाना भांति धार | उपसर्ग सहत ममता निवार ॥१३
जो नपत निहारो नाम कोय । तिस पुत्र पौत्र कुछ वृद्धि होय ॥ भय भरे लक्ष अतिशय भण्डार। दारिद्रतनो दुख होय क्षार ॥१५ जय चोर अग्नि डाकिन पिशाच । अरु ईतिमीत सव नसत सांच ।। जय तुम सुमरत सुख लहत कोकासुर मसुर नवत पद देत धोक।