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________________ २१६ ] जनसिद्धांतसंग्रह । ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं । दशगंध हुताशनमा, हे प्रभु खेवत हों । मिस घूम करम नरि नांहिं, तुम पद सेवत हों | चौवीसों ॥७॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तेभ्योऽष्टकर्मदहनाय धूरं निर्वपा० || शुचि पक्क सरव फक्र सार, सत्र ऋतुके स्थायो । देखत डगमनको प्यार, पूजत सुख पायो ॥ चौवीसौ० ॥८॥ ॐ ह्रीं वृषभादिवीरान्तेभ्यो मोक्षफराप्तये फलं निर्वपा० ॥ मलफल आठों शुचि सार, ताको अर्ध करों । तुमको भरप भवतार, भव तरि मोच्छ वरों ॥ चौवीसों श्री मिनचन्द, आनंदकंद सही । पदमनत हरत भवकंद, यावत मोक्षमही ॥ ९ ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तेभ्यो मन पद राप्तये अर्ध्य | जयमाला । दोहा - श्रीमत तीरथनाथपद, माथ नाय हितहेत । गाऊं गुणमाका भबे, अमर अपरपददेत ॥ १ ॥ धत्ता - जय भवतम्भन मनमनकंजन, रंजन दिनमनि स्वच्छ करा । शिवमगपरकाशक अरिगननाशक, चौवीसौं मिनराज वरा ॥ २ ॥ नय रिषभदेव रिपिगन नमंत । जय अजित नीत वसुमरि तुरन्त । नय समेव भवभय करत चूर। जब अभिनंदन आनंदपूर | २|| मय सुमति सुमतिदायक दयाक जय पद्म पद्मति तनरसाल । जय जय सुपास भवपासनाश | जय चंद चंदतनदुतिप्रकाश ||४|| मय पुष्पदंत दुतिदंत सेत । जय शीतळ शीतळगुननिकेत । अय श्रेमनाथ नुतसहसमुच । नय वासवपूजित वासुपूज्न ॥ ९ ॥
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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