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१९८] जैनसिद्धांतसंग्रह।
सुरपति उरगनरनाथ तिनकर, बन्दनीक सुपदप्रभा। : अंति शोभनीकमुवरण उज्जल, देख छवि मोहित सभा ॥ भर नीर क्षीरसमुद्रघटभरि. अन तमु बहुविषि नचूं।
महंतश्रुतसिद्धांतगुरुनिर्मन्थ नितपूजा रचूं ॥१॥ दोहा-मकिनवस्तु हर लेत सब, नलस्वभाव मलछीन । .
जासों पूजों परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन ॥१॥ ॐहीं देवशास्त्रगुरुभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय नलं ।। ने त्रिजग उदरमझार मानी, तपत अति दुद्धर खरे। . तिन अहितहरन सुवचन जिनके, परम शीतलता भरे .
तमु भ्रमरगेमित प्राण वावन, सरस चंदन पसि सचूं।' । अहंत श्रुतसिद्धांतगुरुनिम्रन्थ नितपूजा रचूं ॥२॥ दोहा-चंदन शीतलता करै, तपतवस्तु परबीन ।
नासों पूजों परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन ..॥
ॐ हीं देवशास्त्रगुरुभ्यः संसारतापविनाशनाय चंदन राम यह मवसमुद्र अपार तारण के निमित्त सुविधि ठई। अति दृढ़ परमपावन नथारथ, भक्ति वर नौका सही ॥ उज्जल अखंडित सालि तंदुल, पुंन घरि त्रयगुण न ।
अहंत श्रुतसिद्धांतगुरुनिन्थ नितपूजा रचूं ॥ ३॥ . दोहा-तंदुल सालि सुगंधि अति, परम अखंडित वीन।
जासों पूनों परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन ॥३॥ . . ॐ हीं देवशास्त्रगुरुभ्यो अक्षयपदमाप्तये आक्षतं ॥३॥ में विनयवंत सुमन्यउरअंबुनप्रकाशन. भान हैं। जे एकमुखचारित्र भारत, त्रिजगमाहि.प्रधान हैं ॥.